बिलासपुर। संभागायुक्त डॉ. संजय अलंग ने कहा कि पंचायत राज और ग्राम विकास के आधार पर एफआरए और पेसा दोनों ही कानून ग्राम सभा को केंद्रीय भूमिका में लाती है और सामुदायिक संसाधनों पर आदिवासियों के पारंपरिक अधिकार को मान्यता देती है। पेसा कानून जनजातीय जीवन के इतिहास में नए युग की शुरुआत का प्रतीक है और समानता लाने का एक प्रमुख साधन है। पेसा और वन अधिकार एक्ट आदिवासियों के हित में बनाये गये ऐतिहासिक कानून हैं। इनके प्रभावी क्रियान्वयन से आदिवासियों के पारंपरिक अधिकार को मान्यता मिलेगी।

हिदायतुल्ला नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी द्वारा आदिवासी शोध और प्रशिक्षण संस्थान तथा ठाकुर प्यारेलाल पंचायत एवं ग्रामीण विकास संस्थान के सहयोग से संविधान दिवस के परिप्रेक्ष्य में आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में डॉ अलंग ने उक्त विचार रखे। यह संगोष्ठी वर्चुअल मोड में 26 एवं 27 नवंबर को आयोजित की गई है। संगोष्ठी के प्रथम दिवस के द्वितीय सत्र में ‘भारत में आदिवासियों के अधिकार, संसाधन और आजीविका, पेसा व वन अधिकार अधिनियम 2006 के क्रियान्वयन विषय पर’ संगोष्ठी रखी गई। डॉ. अलंग ने कहा कि पंचायती राज संस्था प्राचीन काल से हमारे ग्रामीण, सामाजिक ढांचे का मुख्य स्तंभ रही है। इसे संविधान की धारा 40 में नीति निर्देशक प्रावधानों के रूप में जगह दी गई है।

उन्होंने कहा कि पंचायत (अनुसूचित क्षेत्र में विस्तार) अधिनियम 1996 अनुसूचित क्षेत्र में ग्राम समुदायों के लिए स्वशासन के कार्यान्वयन के लिए ऐतिहासिक कानून है। पेसा इन क्षेत्रों में परिवर्तन लाने का महत्वपूर्ण प्रतिमान है। पेसा नियमों का प्रारूप छत्तीसगढ़ में सार्वजनिक विचार विमर्श के लिए जारी किया गया है।

उन्होंने छत्तीसगढ़ पंचायत प्रावधान (अनुसूचित का विस्तार) नियम 2021 (मसौदा नियम) पर प्रकाश डालते हुए बताया कि छत्तीसगढ़ सरकार ने पेसा एक्ट के तहत प्रारूप तैयार किया है। उन्होंने कहा कि कुछ राज्यों में पेसा के तहत सक्षम नियम अभी भी लागू नहीं हैं। पेसा को लागू करने के लिये राज्य व पंचायत के स्तर पर कानूनों में संशोधन करना होगा। उन्होंने सुझाव दिया कि ग्राम सभा और ग्राम पंचायत के दायित्व और शक्तियों के बारे में स्पष्टता होनी चाहिये। साथ ही, लघु जल निकायों, लघु वनोपज आदि की व्याख्या के संबंध में कठिनाइयों को दूर किया जाना होगा। पेसा अधिनियम के प्रभावी क्रियान्ववयन के लिए संबंधित प्रावधानों के बीच सामंजस्य पर गौर करना होगा।

उन्होंने छत्तीसगढ़ के संदर्भ में जनजातियों की आजीविका के लिये बनाई गई नीतियों और योजनाओं पर प्रकाश डाला। लघु वनोपज, न्यूनतम समर्थन मूल्य, वन धन केन्द्र, छत्तीसगढ़ हर्बल ब्रांड, मिलेट मिशन, मुख्यमंत्री वृक्षारोपण प्रोत्साहन योजना, चिराग परियोजना, स्वामी आत्मानंद उत्कृष्ट अंग्रेजी माध्यम स्कूलों की योजना से आदिवासियों के हो रहे आर्थिक- सामाजिक परिवर्तन का उल्लेख किया।

इस सत्र की संगोष्ठी में भारत सरकार के पंचायती राज मंत्रालय के पूर्व विशेष सचिव डॉ. बाला प्रसाद, मानव विकास संस्थान नई दिल्ली के प्रोफेसर डॉ. वर्जीनियस खाखा, पारिस्थितिकी में अनुसंधान के विशेषज्ञ अशोक ट्रस्ट बेंगलूरु के डॉ. शरद लेले तथा सुप्रीम कोर्ट की सीनियर एडवोकेट सुश्री शोमोना खन्ना ने भी अपने विचार रखे।

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