सुकमा। सरकारी खर्चे दिखाकर जंगल में मनमानी कर रहे सुकमा खाद्य विभाग की लापरवाही सामने आई है। टीम जब मौके पर पहुंची तो राशन दुकान के किनारे कई क्विंटल सरकारी नमक खेत में पड़ा हुआ था, जिसका पेकिंग माह अप्रैल 2021 और मई 2021 मिला।

बता दें कि जिले के जगरगुंडा जाने वाले पहुंच विहिन आठ राशन दुकानों का स्थान परिवर्तन से विभाग मस्त है। हितग्राहियों को खाद्यान्न सामग्री पहुंचे या नहीं जिम्मेदारों को उससे कोई मतलब नहीं है। तभी तो कई क्विंटल नमक खेतों में पड़ा हुआ है।

जंगल का सुदूर इलाका जहां स्थान परिवर्तन से खाली पड़े राशन दुकानों के मकान जानवरों का पनाहगाह बन गया है। क्योंकि सुदूर इलाकों की परिस्थिति अनुसार खाद्यान्न स्थल वर्तमान किया जाता है। इसका विभाग के अधिकारी-कर्मचारी पूरा लाभ उठाते हैं। अब ये भवन गंदगी और दुर्गंध से भरा रहता है। ऐसे में जानकारी नहीं होने की वजह से बहुत से हितग्राही राशन आने के इंतजार में भटकते रहते हैं।

जगरगुंडा क्षेत्र में केवल सरकारी खर्चे दिखाकर जंगल में मंगल मनाने का काम सुकमा खाद्य विभाग कर रहा है। खेत में पड़े अमृत नमक यही बता रहे हैं कि हितग्राहियों को राशन का लाभ नहीं मिल पाया है। पहुंचविहीन राशन दुकानों का लाभ किसी हितग्राही को मिले, ना मिले इससे जिम्मेदारों को मतलब नहीं रहता।

बैकेट का बैच नंबर 4 व 5 और पेकिंग अप्रैल-मई 2021 है
मामले की जानकारी जब हुई तो मीडिया की टीम जब मौके पर पहुंची, तो राशन दुकान के किनारे क्विंटल भर सरकारी नमक खेत में पड़ा हुआ था। उठाकर देखा गया जिसमें बैच नंबर 4 और पेकिंग माह अप्रैल 2021 और बैच नंबर 5 और पेकिंग माह मई 2021 था, विदित हो कि सरकारी अमृत नमक पेकिंग के 24 महीने पूर्व तक उपयोग में लाया जाता है, लेकिन इसे नौ महीने में ही खेतों में फेंक दिया गया।

विभाग दे रखा है खुली छूट
यहां बता दें कि दूसरी ओर आधे किलोमीटर दूर पर ही जगरगुंडा सीआरपीएफ बटालियन का कैम्प है। राशन दुकानों की स्थिति देखकर यही प्रतीत होता है कि सुकमा खाद्य विभाग विक्रेताओं को लूट की खुली छूट दे रखा है। इसलिए वे मनमानी कर रहे हैं। इसी कारण से सरकारी अमृत नमक को विक्रेताओं द्वारा खेत में फेंका गया है।

पाखड़ धान को चावल बनाने का दवाब
पता चला है कि यह स्थिति पूरे जिले के अंदरूनी क्षेत्रों की है। विभाग का दूसरा पहलु ये भी है कि सुकमा में ही कई क्विंटल धान पाखड़ बन जाते हैं, फिर राईस मिलरों पर दबाव बनाकर धान उठाव करवाया जाता है, उसी चावल को वेयरहाउस में जमा करवाया जाता है। उसके बाद उसी चावल को राशन दुकानों में वितरण करवाया जाता है। इन सबके बीच केवल आदिवासी हितग्राही का ही शोषण होता है। जांच के नाम पर केवल विभागीय खानापूर्ति होती है।

मुझे जानकारी नहीं
जिला सुकमा के सहायक खाद्य अधिकारी जयवर्धन ठाकुर ने इस संबंध में चर्चा करने पर कहा उक्त क्षेत्र के फूड इंस्पेक्टर से जानकारी लेने के बाद ही कुछ बता पाऊंगा।

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