भिलाई। श्री श्रद्धा सुमन, श्री साईं मंदिर हाउसिंग बोर्ड में श्रद्दा और भक्ति के साथ दत्त जयंती मनाई गई। इस महोत्सव की शुरूआत सुबह अभिषेक से हुआ। उसके बाद मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा की गई। सत्यनारायण की कथा हुई।

इस अवसर पर मंदिर प्रांगण में श्री दत्त जी की पालकी यात्रा निकाली गई। जहां श्रद्दालु पालकी शोभायात्रा में शामिल होकर भजन-कीर्तन के साथ जयकारे लगाए।

इस अवसर पर बताया गया कि दत्तात्रेय भगवान से संबंधित गिरनार पर्वत पर देवस्थान है। त्रेता युग में दत्तात्रेय भगवान का जन्म हुआ था। वेब्रह्मा-विष्णु-महेश व भगवान विष्णु के छठवें अवतार हैं। प्रशांत कुमार क्षीरसागर ने बताया दत्त का अर्थ निर्गुण की अनुभूति वह स्वयं ब्रह्मा ही हैं। जन्म से ही दत्त को निर्गुण की अनुभूति प्राप्त हुई थी।

उनके स्मरण से होते हैं मंगल काम
अवधूत एक भक्त है श्री गुरुदेव दत्त भगवान भक्तों के चिंतन में सदैव तल्लीन रहते हैं। भक्तों के शुभचिंतक हैं। उनके नाम के स्मरण से सब मनोवांछित फल प्राप्त हो जाती है। वहीं आराधना ग्रुप आर्केस्ट्रा ने भजन-कीर्तन की प्रस्तुति देकर सब को मंत्रमुग्ध कर दिया। अंत में खिचड़ी, हलवा का प्रसाद वितरण किया गया।

भगवान दत्तात्रेय के आत्मा ही है गुरु
एक बार राजा यदु ने भगवान दत्तात्रेय से उनके गुरु के बारे में पूछा, तब भगवान दत्तात्रेय ने कहा आत्मा ही मेरा गुरु है। 24 गुरु को मानकर मैंने शिक्षा ग्रहण की है। पृथ्वी, जल, वायु, आकाश, चंद्रमा, सूर्य, कपोत, अजगर, सिंधु, पतंग, भ्रमर, मधुमक्खी, राज, मृग, मीन, पिंगल, कुटूर, पक्षी, बालक, कुमारी, सर्क, बाण बनाने वाला, सांप, मकड़ी, कीट, पतंगा है। अंत में दत्तात्रेय भगवान की प्रिय आरती जय देव जय देव दत्ता अवधूता.. के गायन से आरती की गई।

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