रायपुर। वायलिन जैसे वाद्य मंत्र में निपुण कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलसचिव आनंद बहादूर कहानीकार, ग़ज़लकार, व्यंग्यकार, कवि और अनुवादक भी है। हाल ही में प्रकाशित इनका गजल संग्रह विचारों और भावनाओं का संगम है।

90 के दशक में हंस, कथादेश आदि पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशन के बाद अच्छे कथाकार के रूप में उभरे। फिर ग़ज़ल, नई कविता और अनुवाद में सक्रिय रहे। पिछले चार दशक से लगातार लिख रहे हैं। इस साल की शुरुआत में ही इनका नई कविता का संग्रह ‘समतल और अन्य कविताएं’ एवं ग़ज़ल संग्रह ‘मौसम ख़ुशबू रंग हवाएं’ किताबवाले दिल्ली से छ्प कर आए हैं।

मौसम ख़ुशबू रंग हवाएं ग़ज़ल संग्रह में कुल 151 ग़ज़लें हैं। ये ग़ज़लें विचारों और भावनाओं के साथ जुड़ाव रखती हैं। आनंद बहादुर मूलतः जिंदगी दुख-दर्द, उसकी विडंबना और विद्रूपता के शायर हैं। वैसे उनकी कई ग़ज़लों में प्रेम की भावनाओं के अशआर भी हैं, लेकिन मूल रूप से वे उस तरह से रूमानियत या रोमांस के शायर नहीं हैं जैसे उर्दू ग़ज़ल परंपरा में होते हैं। आधुनिक ग़ज़ल के केंद्रीय-भाव, यानी प्रकृति और पर्यावरण को लेकर चिंता और व्यवस्था को लेकर उदासी और बेचैनी आनंद बहादुर की ग़ज़लों में भी प्रचुरता से पाई जाती हैं।

ग़ज़ल संग्रह मौसम ख़ुशबू रंग हवाएं की पूरी शायरी ज़िंदगी के बारे में सोचने-समझने और उस पर एक राय कायम करने वाले व्यक्ति की शायरी है। एक तरह से, वे समूचे जीवन को विस्मय-भाव से देखते हैं और उसके बारे में अपने शेरों में कयास लगाने की कोशिश करते हैं। उन्हें जीवन के बाह्य रूप के भीतर अर्थों की अनेक सूक्ष्म प्रतिछायाएं नज़र आती हैं जिन्हें वे अपने शेरों में बहुत कुशलता और कारीगरी के साथ उकेरते हैं।

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