सीआईएनए, रायपुर। दूरदर्शन छत्तीसग़ढ पर दुर्ग के जाने माने अधिवक्ता शकील अहमद सिद्की ने पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 और पर्यावरण संरक्षण का महत्त्व को समझाया। साथ ही उन्होंने विस्तार से पर्यावरण के महत्व और पर्यावरण प्रदूषण से हमारे स्वास्थ पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में बताया। विज्ञान के क्षेत्र में असीमित प्रगति तथा नये आविष्कारों की स्पर्धा के कारण प्रकृति का संतुलन बिगड़ गया है।

उन्होंने कहा कि जनसंख्या की निरंतर वृद्धि, औद्योगीकरण एवं शहरीकरण से जहां प्रकृति के हरे भरे क्षेत्रों को समाप्त हो रहे है। विश्व के 174 देशों ने पर्यावरण प्रदूषण पर चिंतन करते हुए सन् 1992 में ब्राजील में ‘पृथ्वी सम्मेलन’ आयोजित किया था। शामिल देशों ने पर्यावरण संरक्षण पर ध्यान देने के लिए अनेक उपाय बताए। अधिवक्ता ने बताया कि इन उपायों पर गौर कर हम पर्यावरण का संरक्षण कर सकते हैं।

अधिवक्ता सिद्धिकी ने बताया कि संसद द्वारा 23 मई 1986 को पर्यावरण संरक्षण अधिनियम पारित किया गया था। जो की 19 नवंबर 1986 को लागू किया गया था । इसमें 4 अध्याय तथा 26 धाराएं होती हैं। इसका मुख्य उद्देश्य संयुक्त राष्ट्र द्वारा पर्यावरण संरक्षण की दिशा में किए गए प्रयासों को भारत में कानून बनाकर लागू करना है।

हमसे जुड़ा है पर्यावरण
अधिवक्ता ने आगे बताया कि पर्यावरण हमसे जुड़ा है और हम पर्यावरण से जुड़े हैं और हम चाहें तो भी खुद को इससे अलग नहीं कर सकते हैं। पर्यावरण और प्रकृति एक दूसरे का अभिन्न हिस्सा हैं। सजीवों द्वारा कि गई हर अच्छी और बुरी गतिविधि का असर पर्यावरण पर पड़ता है। उन्होंने बताया कि हमें प्रकृति का संरक्षण करने के लिए जागरूक होना पड़ेगा, अन्यथा पर्यावरण के साथ सारी मानव जाति का भी विनाश हो जाएगा।

मेधा पाटकर का किया जिक्र
अधिवक्ता ने भारतीय सामाजिक कार्यकर्ता तथा सामाज सुधारक मेधा पाटकर द्वारा चलाए गए नर्मदा बचाओ का भी जिक्र किया। इस आंदोलन में मेधा पाटकर नर्मदा में हो रहे प्रदूषण पर सरकार का धयान केंद्रित किया और नर्मदा को प्रदूषण मुक्त करने में अहम् भूमिका निभाई। उन्होंने कहा तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या व आर्थिक विकास और शहरीकरण व औद्योगीकरण में अनियंत्रित वृद्धि, बड़े पैमाने पर औद्योगीक विस्तार तथा तीव्रीकरण, तथा जंगलों का नष्ट होना इत्यादि भारत में पर्यावरण संबंधी समस्याओं के प्रमुख कारण हैं।