सीआईएनए, डेस्क। ‘मार्स रीकानिसन्स ऑर्बिटर’ एक बहुउद्देशीय अंतरिक्ष यान है। इसे कक्षा से मंगल के अन्वेषण और टोह के लिए रचा गया है। अंतरिक्ष यान एक बार फिर लाल ग्रह की शानदार तस्वीर दिखाई है। ऑर्बिटर पर लगे हाई-रेजॉलूशन इमेजिंग साइंस एक्सपेरिमेंट कैमरे ने शहद के छत्ते के आकार या स्पाइडर-वेब पैटर्न वाली तस्‍वीर दिखाई है। हालांकि यह बात साफ नहीं है कि मंगल ग्रह पर यह छत्ता नुमा आकृति मधुमक्खियों ने ही बनाई है । वैज्ञानिको का मानना है की ये मौसमी बदलावों की वजह से है। ये भी हो सकता कि बर्फ के रूप में मौजूद पानी और कार्बन डाइऑक्साइड की की वजह से ऐसी अनोखी संरचना वाले पैटर्न मंगल ग्रह पर बने सकते है।

साल 2006 में को HiRISE कैमरा ‘मार्स रीकानिसन्स ऑर्बिटर’ पर इन्‍स्‍टॉल किया गया था। ऑर्बिटर को उसी साल इस मंगल के सफर पर भेजा गया था। तब से कई आकृतियों को तस्‍वीरों में उतारा है। वैज्ञानिकों का मानना है कि दिखाई दी संरचनाओं के निर्माण में पानी और कार्बन डाइऑक्साइड दोनों की प्रमुख भूमिका हो सकती है।
वैज्ञानिक का कहना है कि मंगल ग्रह के ऊंचाई वाले इलाकों में बनने वाली ये संरचना पानी और कार्बन डाइऑक्‍साइड की वजह से बनीं। वसंत में जब जमीन गर्म हो जाती है, तो सतह के नीचे से सूखी बर्फ अधिक कटान और चैनल बनाती है। जो की पॉलीगोनल शेप्‍स में बदल जाते है। सतह के नजदीक की बर्फ मौसम के अनुसार फैलती और सिकुड़ती है जिससे इस प्रक्रिया कई साल लगते हैं।

मंगल ग्रह पर पानी की मौजूदगी के सबूत तो पहले ही मिल चुके हैं। यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA) ने पिछले साल अपनी नई स्‍टडी में बताया था कि मंगल ग्रह Mars की वैलेस मेरिनेरिस Valles Marineris घाटी की सतह के नीचे पानी छुपा है। इस घाटी में यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी और एक्सोमार्स ट्रेस गैस ऑर्बिटर (TGO) ने बड़ी मात्रा में पानी की खोज की थी।

वैज्ञानिक ऐसी तकनीक ईजाद करने में लगे हैं कि मंगल ग्रह पर भविष्‍य में इंसान को पहुंचाने में कम से कम समय लगे। कनाडा की मैकगिल यूनिवर्सिटी के रिसर्चर्स के एक ग्रुप ने कहा था कि अगर मंगल पर जाने वाला अंतरिक्ष यान उनके द्वारा बताई गई संचालक शक्ति प्रणाली का इस्‍तेमाल करे तो पृथ्वी-मंगल की यात्रा सिर्फ 45 दिन में की जा सकती है। अगर ऐसा होता है तो मंगल ग्रह से जुड़ी खोज में काफी तेजी आएगी।