नई दिल्ली। एविएशन कंपनी एयर इंडिया 69 साल बाद एक बार फिर देश के सबसे बड़े औद्योगिक घराने टाटा समूह को मिल गई है। वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों ने बताया कि आज एयर इंडिया की कमान टाटा समूह को सौंपी जाएगी। अधिकारियों ने बताया कि अधिग्रहण से जुड़ी सभी औपचारिकताएं पूरी कर ली गई हैं। पिछले साल आठ अक्टूबर को सरकार ने टाटा ग्रुप द्वारा एयर इंडिया के लिए की गई बोली को मंजूरी दी थी।

टाटा ग्रुप ने सबसे ज्यादा 18,000 करोड़ रुपए की बोली लगाई थी। दूसरे नंबर पर स्पाइसजेट के अजय सिंह का कंसोर्टियम था, 15,300 करोड़ रुपए की बोली लगाई थी। विमान कंपनी को बेचने के लिए 12,906 करोड़ रुपये का आरक्षित मूल्य रखा गया था।

समझौते के तहत टाटा समूह को एयर इंडिया एक्सप्रेस और ग्राउंड हैंडलिंग कंपनी एयर इंडिया एसएटीएस में 50 फीसदी हिस्सेदारी दी जाएगी। वर्ष 2003-04 के बाद एयर इंडिया पहली सार्वजनिक कंपनी होगी जिसका निजीकरण आकार लेगा।

इस बीच, दो पायलट यूनियनों – इंडियन पायलट गिल्ड (आईपीजी) और इंडियन कमर्शियल पायलट एसोसिएशन (आईसीपीए) ने एयरलाइन के सीएमडी विक्रम देवदत्त को बकाया राशि में कटौती और वसूली के लिए कानूनी कार्रवाई की चेतावनी दी है।

दोनों संगठनों द्वारा भेजे गए पत्र में कहा गया है, ‘वसूली की कवायद पूरी तरह से गलत है और हम मांग करते हैं कि इस विसंगति को ठीक किया जाए और बकाया का भुगतान तुरंत किया जाए।’

इस डील में पिछले साल 25 अक्टूबर को हुए खरीद समझौते के मुताबिक, टाटा समूह सरकार को 2700 करोड़ रुपये नकद देगा और एयरलाइन का 15,300 करोड़ रुपये का कर्ज उतारेगा।

बताते चलें कि वर्तमान में टाटा समूह सिंगापुर एयरलाइंस के सहयोग से विस्तारा नाम की एक एयरलाइन संचालित करता है। वहीं, बजट एयरलाइन एयरएशिया में समूह की हिस्सेदारी है। एयर इंडिया के अधिग्रहण के साथ, टाटा समूह इंडिगो के बाद एयरलाइन का दूसरा सबसे बड़ा ऑपरेटर बन जाएगा।

तीनों एयरलाइनों की संयुक्त बाजार हिस्सेदारी वर्तमान में 26.9 प्रतिशत है। इस अधिग्रहण के साथ, टाटा को लगभग 148 विमान और 4,400 घरेलू और 1,800 अंतरराष्ट्रीय लैंडिंग-पार्किंग स्लॉट मिलेंगे। हालांकि, प्रति विमान कर्मचारियों के मामले में, यहां टाटा समूह पर अन्य कंपनियों की तुलना में अधिक बोझ होगा।