रायपुर। राज्य सरकार की ओर से गुरुवार को वनांचल पैकेज के अंतर्गत बस्तर संभाग में लघु वनोपज आधारित प्रोसेसिंग यूनिट लगाने के लिए दो त्रिपक्षीय समझौतों पर हस्ताक्षर किये गए। पहला समझौता बस्तर बॉटनिक्स प्राइवेट लिमिटेड कुम्हार पारा के साथ कोंडागांव में महुआ की प्रोसेसिंग यूनिट के लिए तथा दूसरा मेसर्स कोसर एग्रो प्राइवेट लिमिटेड, पुणे (महाराष्ट्र) के साथ बस्तर में इमली की प्रोसेसिंग यूनिट लगाने किया गया।

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की पहल पर ग्रामीण जीवन को बेहतर बनाने कई योजनाएं लागू की गई है। इससे उनकी आमदनी में वृद्धि होने के साथ ही उनके जीवनस्तर में भी बदलाव हुआ है। छत्तीसगढ़ सरकार अब 65 प्रकार की लघुवनोपजों की समर्थन मूल्य पर खरीददारी करने के साथ ही प्रसंस्करण इकाईयों का निर्माण कर रही है। ताकी वनोपजों का सही मूल्य संग्राहकों को मिलने के साथ ही, लोगों को रोजगार और आय के नए अवसर मिले।

इस समझौता में राज्य शासन की ओर से वाणिज्य एवं उद्योग विभाग के प्रभुख सचिव मनोज कुमार पिंगुआ तथा छग राज्य लघु वनोपज संघ के विशेष प्रबंध संचालक एसएस बजाज एवं बस्तर बॉटनिक्स प्राइवेट लिमिटेड के संचालक शुभांक चन्द्राकर तथा मेसर्स कोसर एग्रो प्राइवेट लिमिटेड संचालक कार्तिक कपूर द्वारा हस्ताक्षर किए गए। समझौते के तहत बस्तर बॉटनिक्स प्राइवेट लिमिटेड के द्वारा 4 करोड़ रुपए की लागत से कोण्डागांव जिले में महुआ डिस्टिलेशन प्लांट स्थापित किया जायेगा।

कोंडागांव में लगने वाले प्लांट की क्षमता 600 किलोलीटर प्रतिवर्ष होगी। इस प्लांट के द्वारा तैयार अधिकांश उत्पाद को अन्य देशों में निर्यात किया जाएगा। इस प्लांट के लगने से बस्तर क्षेत्र में फूड ग्रेड महुआ का उपयोग होगा, जिससे उस क्षेत्र के संग्राहकों को अतिरिक्त लाभ प्राप्त होगा। इसके अलावा मेसर्स कोसर एग्रो प्राइवेट लिमिटेड द्वारा जिला बस्तर के लोहण्डीगुड़ा विकासखंड के ग्राम छिन्दगांव में 4 करोड़ 30 लाख रुपए की लागत से इमली प्रंसस्करण केन्द्र की स्थापना की जाएगी।

इस प्रोसेसिंग यूनिट में इमली का पेस्ट, इमली बीज का पावडर तथा इमली ब्रिक्स तैयार किया जायेगा। इस इकाई की वार्षिक क्षमता 4500 मीट्रिक टन प्रतिवर्ष की होगी। इस प्रसंस्करण केन्द्र की स्थापना से बस्तर इमली का प्रसंस्करण करते हुए तथा उसके बीज का भी उपयोग करते हुए तैयार उत्पादों को देश के बाहर विदेशों में भी विक्रय किया जायेगा। इन दोनों प्रसंस्करण इकाईयों की स्थापना से स्थानीय लोगों को जहां रोजगार प्राप्त होगा, वहीं इमली एवं महुआ के संग्राहकों को उनकी उपज का समुचित मूल्य मिल सकेगा।