सीना, डेस्क। वंशवाद की राजनीति और एक परिवार कैसे किसी देश को बर्बाद कर सकता है इसका ताज उद्हारण पड़ोसी देश श्रीलंका में देखने को मिल रहा है। श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटबया राजपक्षे के परिवार ने पूरे देश को कंगाली के कगार पर ला खड़ा किया है। महंगाई चरम पर है और देश में हिंसक प्रदर्शन शुरू हो चुके हैं। एक-एक पाई को तरस से रहे श्रीलंका की हालात कैसे इतने बिगड़ गए। आइए जानते हैं इससे जुड़ी खास बातें…..

विशेषज्ञों का मानना है कि जैसे हालात इस समय श्रीलंका के हैं उसे देखते हुए इस साल के अंत तक श्रीलंका दिवालिया हो जाएगा। देश में जरूरी सामान की किल्लत ने आम लोगों को सड़कों पर आने के लिए मजबूर कर दिया है। इन हालात के लिए जिम्मेदार श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटबया राजपक्षे से इस्तीफा मांगा जा रहा है। विदेशी कर्ज के कारण लगातार देश के हालात बिगड़ते जा रहे हैं।

राजपक्षे बंधु

एक दशक से चल रही है आर्थिक उथल-पुथल
श्रीलंका सरकार विदेशी मुद्रा संकट से निपटने में पूरी तरह से विफल हो गई है। इसके चलते देश कंगाली के कगार पर खड़ा है। स्थिति इतनी बिगड़ चुकी है कि श्रीलंका का रिजर्व बैंक देश के दिवालिया होने की तरफ इशारा कर चुका है। पूरा श्रीलंका मान रहा है कि राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे की सरकार इसके लिए पूरी तरह से जिम्मेदार है। एक ही परिवार के चार भाई श्रीलंका सरकार के मठाधीश बने बैठे हैं। इनकी निरंकुशता व भ्रष्टाचार के कारण देश आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहा है।

देश पर पूरी तरह से राजपक्षे परिवार का नियंत्रण
श्रीलंका की राजनीति में राजपक्षे परिवार पूरी तरह से हावी है। राजपक्षे परिवार के आधा दर्जन से ज्यादा सदस्य श्रीलंका की केन्द्रीय सरकार में शामिल हैं। श्रीलंका के राष्ट्रपति हैं गोटबया राजपक्षे (72) हैं। उनके बड़े भाई महिंदा राजपक्षे (75) श्रीलंका के प्रधानमंत्री हैं। राजपक्षे परिवार के सबसे बड़े भाई चमल राजपक्षे श्रीलंका के गृहमंत्री हैं। वहीं  एक भाई बासिल राजपक्षे श्रीलंका के वित्तमंत्री हैं।

श्रीलंका में हिंसा का एक दृष्य

बेटे से लेकर पोते तक सरकार में शामिल
बात यहीं खत्म नहीं होती है। राष्ट्रपति गोटबया राजपक्षे के बेटा, भतीजा व पोते तक सरकार में शामिल हैं। वर्तमान पीढ़ी के साथ ही राजपक्षे परिवार की अगली पीढ़ी भी श्रीलंका को कंगाल करने खड़ी है। प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे के बेटे नमल राजपक्षे श्रीलंका के खेल व टेक्नोलॉजी मंत्री हैं। इसी प्रकार चमल राजपक्षे के बेटे शाशेन्द्र राजपक्षे श्रीलंका के कृषि मंत्री हैं। श्रीलंका सरकार के प्रमुख लोगों में करीब 70 प्रतिशत प्रमुख मंत्रालय राजपक्षे परिवार के पास है।

निरंकुश माना जाता है राजपक्षे परिवार को
राजपक्षे परिवार को श्रीलंका की राजनीति में पूरी तरह से निरंकुश माना जाता है। साल 2015 तक महिंदा राजपक्षे दो बार श्रीलंका के राष्ट्रपति रहे। 2015 में उन्होंने संविधान संशोधन कर तीसरी बार राष्ट्रपति का चुनाव लड़ा और हार गए। 2019 में ईस्टर के मौके पर एक चर्च में इस्लामिक आतंकियों ने भीषण बम धमाका किया। इसके बाद हुए चुनाव में  गोटबया राजपक्षे ने आसानी से जीत हासिल कर ली। वे राष्ट्रपति बन गये और अपने बड़े भाई महिंदा राजपक्षे को प्रधानमंत्री बना दिया।

सिलेंढर के लिए लली लाइन

काम चलाने सरकार बेच रही थी सोना
सरकार चलाने के लिए राजपक्षे परिवार देश का सोने का भंडार खाली कर रहा था। इकोनॉमी नेक्स्ट की एक रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2021 में श्रीलंका के केन्द्रीय बैंक के पास 6.69 टन सोने का भंडार था, जिसमें से करीब 3.6 टन सोना अभी तक बेचा जा चुका है। रिपोर्ट के अनुसार श्रीलंका के पास करीब 3.0 से 31 टन ही सोना बचा है। श्रीलंका ने कोई पहली बार सोना नहीं बेचा है, बल्कि इससे पहले साल 2020 की शुरूआत में श्रीलंका के पास 19.6 टन सोना था, जिसमें से 12.3 टन सोना बेच दिया गया।

चीन ने भी किया किनारा
श्रीलंका की राजपक्षे सरकार को चीन का करीबी माना जा रहा था लेकिन कंगाल होने के बाद चीन ने भी इनसे किनारा कर लिया। श्रीलंका सरकार ने चीन से कर्ज में छूट देने मिन्नते की, लेकिन चीन ने अपना रुख स्पष्ट कर दिया। चीन किसी भी तरह से छूट देने को तैयार नहीं है। बताया जा रहा है कि जनवरी के पहले हफ्ते में श्रीलंका के राष्ट्रपति ने चीन से कर्ज में छूट देने का अनुरोध किया था। जिसे चीन ने सीधे तौर पर नकार दिया है।