बीजापुर। हजारों ग्रामीण 12 मई 2021 से सड़क, पुल-पुलिए और कैंप की तैनाती के खिलाफी आंदोलन कर रहे थे। इसी बीच 17 मई को हुए गोलीकांड में तीन ग्रामीणों की मौत के बाद सिलगेर और वह आंदोलन देशभर के अखबारों की सुर्खियां बना दिया। तब से सिलगेर में बीते आठ महीनों से लगातार आंदोलन जारी है। हालांकि, पुलिस और प्रशासन की कड़ी मेहनत से एक सुखद बदलाव भी हुआ है, जिससे उम्मीद जगी है कि विकास कार्य नक्सलियों के कुहासे को हटाकर नई दशा और दिशा देंगे।

बीजापुर एसपी कमलोचन कश्यप के नेतृत्व में सिलगेर से पहले मोकुर तक घर-घर में बिजली की सुविधा पहुंचाई गई। अंधेरे को हटाने के बाद अब चमचमाती डामर की सड़क ने इलाके में लोगों के लिए आना-जाना आसान कर दिया है। हालांकि, लोगों का आंदोलन अभी भी जारी है, लेकिन कहीं न कहीं बिजली और सड़क के आने से उनके मन में खुशी भी है। नक्सलियों के डर के बावजूद वे इस बदलाव को स्वीकार कर रहे हैं।

ग्रामीणों के लगातार आंदोलन और विरोध प्रदर्शन के चलते क्षेत्र में बिजली और सड़क पहुंचना लगभग नामुमकिन लग रहा था। हालांकि, जिला प्रशासन और पुलिस की कड़ी मेहनत ने इसे संभव कर दिया है। सरकार की मंशा के अनुसार नक्सलियों के कोर इलाकों को भेदते हुए बासागुड़ा तर्रेम और सिलगेर होते हुए चिंतलनार, जगरगुंडा को जोड़कर बीजापुर और सुकमा, जिले के बीच रास्ता बनाकर लोगों के आवागमन को आसान करने का खाका तैयार किया गया था।

परिणामस्वरूप अब यह सड़क बासागुड़ा से होते हुए कड़ी सुरक्षा के बीच तर्रेम को पार कर सुकमा जिले के प्रवेश द्वार कहे जाने वाले मोकुर तक पहुंच गई है। बिजली के भी साथ आने से जीवन में बदलाव दिखने लगा है। बीजापुर जिले से निर्माणाधीन सड़क अब सुकमा जिले की सरहद के आगे पहुंच गई है।

बीजापुर एसपी कमलोचन का कहना है कि इस सड़क के पूर्ण होने से नक्सलियों के वो सारे इलाके विकास के साथ जवानों की जद में आ जाएंगे, जहां बड़े माओवादी लीडर कैंप बनाकर पनाह लेते हैं। ऐसा होने पर सारा इलाका जल्द ही नक्सलियों को खाली करना पड़ेगा। इसी के चलते ग्रामीणों को हथियारों के बल पर डरा धमकाकर नक्सली कैंप और सड़कों का विरोध करने के लिए भेज रहे हैं।

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