रायपुर। विश्व प्रसिद्ध खैरागढ़ इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय के कुलपति की आयु सीमा में वृद्धि की गई है। इसके लिए राज्यपाल सुश्री अनुसुईया उइके ने विश्वविद्यालय अधिनियम, 1965 (क्र. 19 सन 1956) में संशोधन विधेयक पर हस्ताक्षर कर दिए हैं।

यह अधिनियम इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय (संशोधन) अधिनियम, 2021 कहलायेगा। इसका विस्तार सम्पूर्ण छत्तीसगढ़ राज्य में होगा। यह राजपत्र में इसके प्रकाशन की तारीख से प्रवृत्त होगा।

इस अधिनियम की धारा 12 में संशोधन किया गया है कि ‘‘इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय अधिनियम 1956 (क्र. 19 सन 1956) की धारा 12-क की उपधारा (2) के परंतुक में, अंक ‘‘65’’ के स्थान पर, अंक ‘‘70’’ प्रतिस्थापित किया जाये।’’ अर्थात इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय के कुलपति की आयु सीमा 65 वर्ष के स्थान पर 70 वर्ष होगी।

बता दें कि राज्यपाल सुश्री अनुसुईया उइके हाल ही में एक दिवसीय प्रवास पर इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ पहुंची थीं। जहां रंगमंडल के उद्घाटन अवसर पर विश्वविद्यालय के विभिन्न विभागों का अवलोकन की थीं। वहीं विभिन्न चित्रकला विभाग पहुंचकर विद्यार्थियों द्वारा मूर्तिकला और चित्रकला की प्रदर्शनी व कलाकृतियों को देखकर प्रसन्नता जाहिर की थी।

इसके बाद राज्यपाल ने लोक संगीत विभाग के निरीक्षण के दौरान छात्र-छात्राओं ने राज्यपाल का लोकगीत और लोक नृत्य के साथ स्वागत किया था। वहीं ऐतिहासिक लाइब्रेरी में 5000 रिकॉर्ड (तवा) संग्रहण की सराहना भी की। साथ ही सुश्री उइके ने विश्वविद्यालय की स्थापना करने वाले राजा स्वर्गीय बीरेंद्र बहादुर सिंह और उनके पूर्वजों के चित्रों को देख अभिभूत हुई थीं।

ये है कला-संगीत विश्वविद्यालय का इतिहास
राजनांदगांव जिले में स्थित खैरागढ़ इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय के इतिहास के अनुसार खैरागढ़ रियासत की राजकुमारी को संगीत का बड़ा शौक था। राजकुमार की बाल्याकाल में ही असमय मृत्‍यु के बाद राजा साहब और रानी साहिबा ने स्‍वर्गवासी राजकुमारी के शौक को शिक्षा का रूप देकर अमर कर दिया।

प्रारंभ में इन्दिरा संगीत महाविद्यालय के नाम से इस संस्‍था का प्रारंभ महज़ दो कमरों के एक भवन में किया गया था, जिसमें 4-6 विद्यार्थी एवं तीन गुरु हुआ करते थे। इस संस्‍था के बढ़ते प्रभाव और लगातार छात्रों की वृद्धि से रानी साहिबा ने इसे अकादमी में बदलने का निर्णय लिया और फिर यह संस्‍था इन्दिरा संगीत अकादमी के नाम से जानी जाने लगी।

साथ ही एक बड़े भवन की भी व्‍यवस्‍था की गई जिसमें कमरों की संख्‍या ज्‍यादा थी। समय के साथ धीरे धीरे संगीत के इस मंदिर का प्रभाव और बढ़ता गया। इसी बीच राजा साहब व रानी साहिबा मध्‍य प्रदेश राज्‍य के मंत्री बनाये गये। तब उन्‍होंने इसे विश्‍वविद्यालय के रूप में स्‍थापित किये जाने का प्रस्‍ताव तत्‍कालीन मुख्‍यमंत्री पं.रवि शंकर शुक्‍ल के समक्ष रखा, जिसे उन्‍होंने स्‍वीकार कर लिया।

उसके बाद समस्‍त औपचारिकताओं को पूरा कर राजकुमारी इन्दिरा के जन्‍म दिवस 14 अक्‍टूबर 1956 को इन्दिरा कला संगीत विश्‍वविद्यालय की विधिवत स्‍थापना कर दी गई थी। इसका उद्घाटन प्रियदर्शिनी इन्दिरा गांधी जी द्वारा स्‍वयं खैरागढ़ आकर किया गया और विश्‍वविद्यालय के प्रथम कुलपति के रूप में श्री कृष्णक नारायण रातन्ज नकर जी नियुक्त किये गये थे।

ललित कला के क्षेत्र में यह एक अनोखा प्रयास था। इस विश्‍वविद्यालय के लिए राजा साहब व रानी साहिबा ने अपना महल ‘कमल विलास पैलेस’ दान कर दिया। यह विश्‍वविद्यालय आज भी इसी भवन से संचालित हो रहा है।