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रायपुर। छत्तीसगढ़ में मार्च के अंत तक गर्मी ने अपना रूप दिखाना शुरू कर दिया है। पारा लगातार बढ़ता जा रहा है। बुधवार को छत्तीसगढ़ के कई स्थानों पर पारा 40 डिग्री सेल्सियस के पार पहुंच गया। ऐसे में स्कूलों में छात्रों और शिक्षकों को सुरक्षित रखने के लिए उपायों की एडवाइजरी जारी की गई है।

मामले में जिला शिक्षा अधिकारियों को नोडल अधिकारी की जिम्मेदारी दी गई है। मुख्यमंत्री शाला सुरक्षा कार्यक्रम के अंतर्गत आपदा प्रबंधन के तहत नोडल अधिकारी नियुक्त किए गए हैं।

एडवाइजरी के तहत प्रशासन, विद्यालय तथा परिवार को आवश्यक सुझाव दिए गए हैं। जहां प्रशासन स्तर को 5 बिंदुओं में एडवाइजरी जारी की गई है, वहीं स्कूली स्तर पर भी पांच बिंदुओं के आदेश है। इसके साथ ही पारिवारिक स्तर पर 12 बिंदुओं में एडवाइजरी जारी की गई है। यह आदेश राज्य परियोजना के कार्यालय समग्र शिक्षा से जारी किया गया है।

टिन शेड, पेड़ के नीचे नहीं लगेंगी क्लास
बढ़ती गर्मी से 55 लाख विद्यार्थियों को बचाने के लिए विभाग ने आदेश जारी कर दिया है। इस पर तीन स्तर प्रशासन, शाला एवं पारिवारिक स्तर अमल में लाने को कहा गया है। स्कूल शिक्षा विभाग ने शालाओं को टीनशेड, पेड़ और एसबेस्टस शीट के नीचे नहीं लगाने के सख्त निर्देश दिए हैं।

अब स्कूल आते ही सबसे पहले बच्चे से पूछा जाएगा कि पिछले 8-10 घंटों में उसे उल्टी-दस्त, बुखार, शरीर में दर्द आदि की परेशानी तो नहीं हुई। यदि ऐसा है तत्काल अभिभावक को सूचना देकर उनकी देख-रेख या डॉक्टर के पास भेजा जाएगा। प्रदेश में भविष्य में और तापमान बढ़ने की संभावना को लेकर मुख्यमंत्री शाला सुरक्षा कार्यक्रम के अनुसार गर्मी से बचाव की एडवाइजरी का पालन कराने सभी डीईओ को इस आपदा प्रबंधन का नोडल अधिकारी बनाया गया है।

विभाग के अनुसार राज्य में ग्रीष्मकालीन अवकाश में कटौती कर कुछ और दिनों तक कक्षाएं लगाए जाने का निर्देश हैं। इस वजह से परिवार स्तर पर किए जाने वाले कार्यों की जानकारियां को बच्चों को कॉपी में नोट करवाकर उनके अभिभावकों से हस्ताक्षर करवाने, सभी घरों तक संदेश पहुंचाया जा रहा है। इसे बनाने में यूनिसेफ के आपदा प्रबंधन प्रकोष्ठ का सहयोग भी लिया गया है।

जान जोखिम में पड़ सकती है
राज्य में गर्मी को लेकर मौसम वैज्ञानिकों का अनुमान है कि मानसून कमजोर रहेगा और गर्मी ज्यादा पड़ेगी। कम वर्षा के कारण वातावरण में सामान्य नमी में भी कमी आएगी। मौसम शुष्क रहने की भी संभावना होगी। परिणाम स्वरूप गरम हवाओं या लू चलने की पूरी संभावना होगी। ऐसे में शालाओं में पढ़ने वाले बच्चे विशेष जोखिम में पड़ सकते हैं, जिन पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होगी।

लू लगने के सामान्य लक्षण पर ध्यान
गरम हवाओं व लू लगने के सामान्य लक्षण के रूप में उल्टी या दस्त या दोनों का होना पाया जाता है। अत्यधिक प्यास लगने लगती है। तेज बुखार आ सकता है। कभी-कभी मूर्छा भी आ सकती है। इसके लिए पूर्व तैयारी, लोगों में जागरूकता एवं बचाव के उपायों को जानकर ही जीवन को सुरक्षित किया जा सकता है। इन तैयारियों को तीन स्तरों में बांटा गया है।

प्रशासन स्तर पर
गरम हवाओं व लू लगने के लक्षण, उसके कुप्रभाव एवं प्राथमिक उपचार के संदर्भ में सभी शिक्षकों, ब्लाक स्तर पर कार्य करने वाले अधिकारियों को बताया जा रहा है कि किन लक्षणों के होने पर प्रभावित को तत्काल विशेष चिकित्सकीय सहायता की आवश्यकता होगी।
गरम हवाओं लू के चलने के दौरान या तापमान के सामान्य से अधिक रहने पर स्थितियों की समीक्षा कर आवश्यकतानुसार शालाओं के संचालन के समय में बदलाव किया जा सकता है। इसके लिए स्कूल शिक्षा विभाग के पत्रों के अनुसार आवश्यक कार्रवाई करें।
गरम हवाओं व लू से प्रभावित होने पर या लग जाने पर तत्काल क्या किया जाना चाहिए? क्या नहीं किया जाना चाहिए, की जानकारी प्राप्त कर उसका प्रचार-प्रसार किया जाए।
सभी शालाओं में ओआरएस पावडर रखें, ताकि लू लगने पर प्रभावितों के लिए ओआरएस पाउडर जो ताप-घात में प्रयोग की जा सके।
लू चलने के दौरान उसके चपेट में आने पर इलाज करने के लिए जिले के स्वास्थ्य विभाग से समन्वय स्थापित करें। प्राथमिकता के आधार पर स्थानीय अस्पताल में उपचार या भर्ती कराया जा सके।

शाला स्तर पर
1 सभी शालाओं पर पीने के पानी की जांच की जाए। पानी के स्रोत की मरम्मत की कराएं, ताकि शुद्ध पेयजल की आपूर्ति में बाधा न पड़े।
2 सभी शालाओं में ओआरएस पाउडर तथा उसके विकल्प के रूप में नमक व चीनी की उपलब्ध रहे। जो ताप-घात, उल्टी व दस्त होने में प्रयोग हो सके।
3 गरम हवाओं व लू के चलने या तापमान के सामान्य से अधिक रहने के दौरान शालाओं का संचालन किन्ही भी परिस्थतियों में टीनशेड के नीचे, खुले में पेड़ के नीचे, एसबेस्टस शीट के नीचे नहीं किया जाए। ऐसी परिस्थितियों में उपयुक्त स्थान का चयन पूर्व में ही कर लिया जाए।
4 अगर शालाओं में बिजली है, वहां विद्युत विभाग के कर्मियों से समन्वय स्थापित करें, ताकि शालाओं में विद्युत आपूर्ति होती रहे। स्थानीय स्तर पर पंचायत के समन्वय से केंद्र पर पंखे लगवाने का प्रयास करें।

परिवार स्तर पर
दोपहर में बच्चों को खेलने घर से बाहर न निकलने दें।
यथासंभव सूती, हल्का और हल्के रंग का कपड़ा पहनाएं।
थोड़े-थोड़े अंतराल में पानी पीने को देते रहें। यथासंभव पानी में ग्लूकोज मिलाकर दें।
हल्का भोजन दिन में थोड़ा-थोड़ा करके करें।
ताजा पका हुआ ही भोजन करें।
बच्चों को जानकारी दी जाए कि वह घर से स्कूल तक सिर पर टोपी, गमछा या छाता लेकर आएं।
लू लगने पर तौलिया-गमछा ठंडे पानी में भिगोकर सिर पर रखें। पूरे शरीर को भीगे कपड़े से बार-बार पोंछते रहें, ताकि शरीर का तापमान बढ़ने नहीं पाए।
लू लगने पर आम के पने का घोल एवं नारियल का पानी पीने को दें।
ओआरएस का घोल एवं ग्लूकोज भी नियमित रूप से लें।
ताजी दाल का पानी, चावल का माड़ में थोड़ा सा नमक मिलाकर बच्चों को उनकी रुचि एवं पाचन शक्ति के अनुसार दिया जाए।
गंभीर स्थिति होने पर तुरंत नजदीक के अस्पताल में भर्ती कराएं एवं डॉक्टर की सलाह लें।