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जयपुर। हमारा भारत देश मान्यताओं और परंपराओं का देश है। जहां धर्म और मान्यताएं शास्त्र के अंग हैं। सनातन धर्म के अनुसार लोग इससे जुड़कर हजारों साल से अपनी संस्कृति को संजोए हुए है। इसी से जुड़ी एक मान्यता होली का त्योहार है। अलग-अलग प्रदेश में इसे अलग-अलग तरीके से मानाते हैं।

इसी में से एक राजस्थान का क्षेत्र है। जहां होली की अलग-अलग परंपराएं हैं, जिसे लोग वर्षों से निभाते आ रहे हैं। कई जगह होली की परंपरा इतनी खतरनाक है कि लोगों को अस्पताल में भर्ती करवाना तक पड़ जाता है।

बता दें कि फाल्गुन की बयार के साथ फिजा में रंग और अबीर गुलाल घुल चुका है। लोगों पर होली का रंग चढ़ चुका है। रंगों से होली खेला जाना आम बात है, लेकिन राजस्थान में होली के त्योहार के कई रूप देखने को मिलते हैं। कहीं रंगों के साथ फूलों से होली खेली जाती हैं तो कहीं खूनी होली खेलकर परंपरा का निर्वहन किया जाता है। आइए जानते हैं कि राजस्थानी रंगों के अलावा कैसे होली के त्योहार को मनाते हैं।

दहकते अंगारों पर नंगे पांव चलते हैं लोग


सबसे पहले डूंगरपुर की होली की बात करते हैं। वागड़वासी पर होली का खुमार एक महीने तक रहता है। होली के तहत जिले के कोकापुर गांव में लोग होलिका के दहकते अंगारों पर नंगे पांव चलने की परंपरा निभाते हैं। मान्यता है कि अंगारों पर चलने से घर में विपदा नहीं आती।

भीलूडा में पत्थरमार होली


डूंगरपुर के ही भीलूडा में खूनी होली खेली जाती है। पिछले 200 साल से धुलंडी पर लोग खतरनाक पत्थरमार होली खेलते आ रहे हैं। डूंगरपुरवासी रंगों के स्थान पर पत्थर बरसा कर खून बहाने को शगुन मानते हैं। भारी संख्या में लोग स्थानीय रघुनाथ मंदिर परिसर में एकत्रित होते हैं। फिर दो टोलियों में बंटकर एक दूसरे पर पत्थर बरसाना शुरू कर देते हैं। इसमें कुछ लोगों के पास ढ़ाले भी होती हैं, लेकिन हर साल कई लोग इस खेल में गंभीर रूप से घायल हो जाते हैं और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया जाता है।

लट्ठमार होली


मथुरा से समीप होने के कारण भरतपुर और करौली के नंदगांव में लोग लठमार होली खेलते हैं। पुरुष महिलाओं पर रंग बरसाते हैं तो राधा रूपी महिलाएं उन पर लाठियों से वार करती हैं।

फूलों की होली
जयपुर के गोविंददेव मंदिर में होली का त्योहार बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। यहां गुलाब और अन्य फूलों से होली खेली जाती है। इस दौरान राधा-कृष्ण के प्रेमलीला का मनोहर मंचन भी होता है। इस बार गोविंददेव मंदिर में 200 किलो फूलों से होली की शुरुआत हुई।

चंग और महरी नृत्य
राजस्थान के शेखावती में होली पर चंग और महरी नृत्य करने की परंपरा है। पुरुष चंग को एक हाथ से थामकर और दूसरे हाथ से थपकियां बजाकर सामूहिक नृत्य करते हैं। भाग लेने वाले कुछ कलाकार महिला का वेश धारण करते हैं, जिन्हें ‘महरी’ कहा जाता है। इन्हें देखने के लिए भारी भीड़ जुटती है।

कोड़ामार होली
श्रीगंगानगर और हनुमानगढ़ में कोड़ामार होली खेलने की परंपरा है। ढ़ोल की थाप पर लोगों की टोली रंग-गुलाल उड़ाते हुए निकलती। वहीं महिलाओं की टोली कपड़े को कोड़े की तरह लपेट कर रंग में भिगोकर पुरुषों को मारती है।

गोटा गैर व डोलची होली
बीकानेर में डोलची होली खेलने की परंपरा है। दो गुटों में पानी डोलची में रखकर खेली जाती है। ये डोलची चमड़े की बनी होती है। जिसमें पानी भरकर लोग एक-दूसरे पर डालते हैं।